
कड़वा सच – भक्ति या मात्र औपचारिकता?
“आदमी भगवान से लाखों-करोड़ों की चाहत रखता है, लेकिन जब मंदिर जाता है तो जेब में सिक्के ही ढूँढता है।”
यह कथन केवल एक तंज नहीं, बल्कि आज के समाज का कड़वा यथार्थ है। हम सभी भगवान से बड़ी-बड़ी इच्छाएँ रखते हैं — धन, सुख, स्वास्थ्य, सफलता, संतान सुख, मान-सम्मान, और भी बहुत कुछ। लेकिन जब हमें भगवान के लिए कुछ देने का अवसर आता है, तब हमारी भक्ति केवल सिक्कों तक सिमट जाती है।
इसका अर्थ यह नहीं कि मंदिर में दान देना ही भक्ति का प्रमाण है। बात इससे कहीं आगे की है। यह एक मानसिकता को दर्शाता है — हम मांगने में बड़े होते जा रहे हैं, पर देने में छोटे। हमारी भक्ति स्वार्थ से भरी हुई हो गई है। हम उस भगवान से सब कुछ चाहते हैं, पर बदले में देने को तैयार नहीं होते — न समय, न सेवा, न श्रद्धा, न समर्पण।
शास्त्री कपिल जीवन दास जी, श्री स्वामिनारायण गुरुकुल सलवाव वापी के माध्यम से जो सन्देश दे रहे हैं — वह सिर्फ मंदिर या दान की बात नहीं कर रहा, बल्कि वह मानव सेवा की बात कर रहे हैं। उनका स्पष्ट कहना है — “गरीब समाज की सेवा ही सच्ची भक्ति है।”
भगवान मंदिर में ही नहीं बसते। वे तो उस हर भूखे के पेट में हैं, हर अनपढ़ बच्चे की आंखों में हैं, हर पीड़ित के आंसुओं में हैं। जो व्यक्ति अपने सामर्थ्य अनुसार ऐसे जरूरतमंदों की सहायता करता है, वही सच्चा भक्त कहलाता है।
गुरुकुल सलवाव जैसी संस्थाएं इस सिद्धांत को जीवन में उतारती हैं। वहाँ बच्चों को शिक्षा, संस्कार, और सेवा का भाव सिखाया जाता है। गुरुकुल का उद्देश्य न सिर्फ धार्मिक शिक्षा देना है, बल्कि ऐसे संस्कारी नागरिक तैयार करना है जो देश और समाज के लिए उपयोगी बनें।
अगर हम चाहते हैं कि भगवान हमारी प्रार्थना सुने, तो हमें भी अपने कर्मों से ये साबित करना होगा कि हम उनके भक्त हैं — सिर्फ वाणी से नहीं, ह्रदय और कार्यों से भी।
इसलिए, अगली बार जब आप मंदिर जाएं, तो जेब के साथ दिल भी टटोलिए। क्या उसमें सेवा की भावना है? क्या उसमें परोपकार की भावना है? अगर है — तो समझिए कि आपकी भक्ति पूरी है।
📍 गुरुकुल सलवाव, वापी, गुजरात – 396191
📞 WhatsApp: 9825058774
✍️ शास्त्री कपिल जीवन दास जी
🌸 “गरीब समाज की सेवा ही सच्ची भक्ति है।”